शिविर परिचय
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भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी द्वारा प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है। तदर्थ सादर प्रस्तुति है। जैनागम की मूलभाषा प्राकृत को सीखने का श्रेष्ठतम अवसर है।
प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन द्वारा आयोजित
प्राकृत विद्या शिक्षण शिविर
प्रेरणा - प्राकृताचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज
आशीर्वाद - आचार्यश्री समयसागरजी महाराज, आचार्यश्री वसुनंदीजी महाराज, आचार्यश्री विशुद्धसागरजी महाराज, आचार्यश्री विभवसागरजी महाराज, आचार्यश्री प्रसन्नसागरजी महाराज, उपाध्यायश्री विरंजनसागरजी महाराज, मुनिश्री प्रणम्यसागरजी महाराज, मुनिश्री आदित्यसागरजी महाराज
क्यों जरूरी है प्राकृत भाषा सीखना?
णमोकार महामंत्र प्राकृत भाषा में निबद्ध है। प्राय: जैनागम के ग्रन्थों का प्रणयन प्राकृत भाषा में किया गया है। भारत की प्राय: भाषाएं प्राकृत से ही नि:सृत हुई हैं। भारत सरकार ने भी प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है। प्राकृत ही एक मात्र साधन है जो हमारे कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। अत: प्राकृत भाषा का शुरूआती ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। प्राकृत की भक्तियाँ, स्तुतियाँ, समयसारआदि ग्रन्थ प्राकृत में ही है। अत: यह शिविर आप सभी के लिए अत्यंत उपयोगी है। आईये! आप और हम प्राकृत सीखने के लिए शिविर से जुडे और अन्य को भी प्रेरित करें।
शिविर की विशेषताएं
- सर्वश्रेष्ठ और विविध कौशल सम्पन्न विद्वानों अध्यापन। - बच्चों को संस्कार देने वाली शिक्षा। - प्राकृत भाषा का शिक्षण एवं प्रशिक्षण। - जैन धर्म के सामान्य ज्ञान और विशिष्ट ज्ञान से जोड़ने वाली शिक्षा। - पूजन प्रशिक्षण। - ज्ञान-ध्यान-आराधना की विशेष कक्षाएं। - वरिष्ठ विद्वानों का समय-समय पर मार्गदर्शन। - पाठशाला शिक्षकों को रोचक विधि से पढ़ाने की कार्ययोजना। - पुरस्कार, सम्मान और जीवन की फलश्रुति प्रदान की करने वाली विशेषताओं के साथ।
अध्यापक विद्वान्
0 श्रमण संस्कृति के प्रति सदा समर्पित रहते हैं। 0 प्राकृत फाउण्डेशन के निर्देशानुसार ही गतिविधियाँ संचालित करते हैं। 0 किसी भी प्रकार के विवादित विषय पर चर्चा नहीं करते हैं। 0 शिविर के दौरान निर्धारित परिधान कुर्ता-पायजामा ही पहनते हैं। 0 नवीन शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग करते हैं। 0 प्रतिदिन शिविर की रिपोर्ट प्राकृत फाउण्डेशन और शिविर संयोजक को प्रदान करते हैं। 0 कक्षा में समय से 5 मिनिट पूर्व पहुँचते हैं। 0 सांस्कृतिक कार्यक्रम पूर्णतया धार्मिकता से जुड़े ही करवाते हैं। 0 प्रतिदिन अभिषेक-देवपूजन अवश्य करें।
समाज के उत्तरदायित्व
विद्वान् के आवास एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था। मंच, माईक और शिविरार्थियों को बैठने की उत्तम व्यवस्था। स्थानीय स्तर पर शिविरार्थियों के लिए प्रोत्साहनार्थ पुरस्कार आदि की व्यवस्था। प्रतिदिवस समाज के पदाधिकारियों का शिविर का अवलोकन और आवश्यकताओं की पूर्ति। प्रभावनार्थ फोटो संग्रहण करना और समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित करवाना।
शिविर में पढ़ाए जाने वाले विषय
• प्रथमोदय(3 वर्ष से 6 तक) • पाइय-विण्णाणं(प्राकृत विज्ञान भाग-1) (7 से 10 वर्ष तक) • पाइय-विण्णाणं(प्राकृत विज्ञान भाग-1) (10 वर्ष से ऊपर) • दव्वसंगहो(द्रव्यसंग्रह) • गुणट्ठाण-विण्णाणं(गुणस्थान विज्ञान) • पाइय-वागरणं (प्राकृत-व्याकरण) • समय-विण्णाणं (समय-विज्ञान)
शिविर उद्घाटन समारोह
प्रारम्भिक व्यवस्थायें -
1. मंच, 2. माईक, 3. भगवान की फोटो, दिगम्बर जैनाचार्य, मुनिराज के चित्र, 4. दीपक, 5. मंगलकलश, 6. तिलक, 7. मौली, 8. बैठकव्यवस्था, 9. माला, 10. श्रीफल।
उद्घाटन कार्यक्रम आयोजना
प्रातः 6.00 बजे से अभिषेक पूजन प्रातः 7.30 बजे से झंडारोहण प्रातः 7.45 बजे से चित्रानावरण प्रातः 7.50 बजे से दीपप्रज्वलन प्रातः 7.55 बजे से मंगलकलश स्थापना करना। प्रातः 8.00 बजे से मंगलाचरण। प्रातः 8.10 बजे से समाज द्वारा विद्वान् का स्वागत एवं सम्मान। प्रातः 8.20 बजे से समाज द्वारा शिविर की उपयोगिता पर विचार। प्रातः 8.40 बजे से विद्वान् द्वारा शिविर की रूपरेखा बताना। प्रातः 9.00 बजे से कक्षायें प्रारम्भ।
नोटः- मंगलकलशादि विराजमान हेतु जो भी राशि निश्चित हो वह करना चाहिये जिससे उस राशि का उपयोग शिविर आयोजन हेतु किया जा सकें।
शिविर दिनचर्या
प्रातः 5.00 बजे से प्रार्थना। प्रातः 5.15 बजे से ध्यान, योग। प्रातः 6.45 बजे से अभिषेक, शांतिधारा, पूजन। प्रातः 8.30 बजे से कक्षायें प्रारम्भ। दोप. 2.00 बजे से विभन्नि प्रतियोगितायें। दोप. 3.30 बजे से कक्षायें प्रारम्भ। सायं. 7.00 बजे से आरती एवं भक्ति। सायं. 7.30 बजे से प्रवचन, शंका-समाधन एवं लघु प्रश्नमंच। सायं. 8.20 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम।
स्थानीय समापन समारोह
स्थानीय समाज की क्षमतानुसार रात्रि 8.00 बजे से समापन समारोह का आयोजन करना चाहिए जिसमें -
1. प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान एवं सान्त्वना प्राप्त शिविरार्थियों को पुरस्कार प्रदान करना। 2. सान्त्वना पुरस्कार समाज द्वारा स्वयं के निर्णय अनुसार ही किए जावें, तो उत्तम होगा। 3. शिविर कैसा लगा? इसके अनुभव लिखित लेना है(लेखक के नाम पता सहित)। 4. समापन में ली गई एवं शिविर अध्ययन के दौरान ली गई फोटो कम से कम 5 प्रति अवश्य निकलवायें एवं भिजवायें भी। 5. समाज के अध्यक्ष, मंत्री, एवं गणमान्य श्रेष्ठीवर्ग, समाजसेवी, आदि अपने लेटरपैड पर शिविर के सम्बन्ध में गुण-दोष एवं सुझाव लिखकर अवश्य दें।
सर्वाध्यक्ष -
डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बडौत
अध्यक्ष -
डॉ.ऋषभचन्द जैन फौजदार दमोह
राष्ट्रीय संयोजक -
डॉ. आशीष जैन आचार्य शाहगढ़
(9329092390)
About Us
भारत सरकार ने प्राच्य भाषाओं के अन्तर्गत आने वाली, देश की प्राचीन प्राकृत भाषा को अक्टूबर २०२४ को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है, जिसका मूल उद्देश्य इस भाषा में छुपे हुए वे सारे रहस्य जिससे राष्ट्र की समृद्धि, विकास, संस्कृति परिज्ञान और आर्थिक सम्पन्नता आदि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सके, जो आज अनुपलब्ध है।