समिति के उद्देश्य
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समिति के उद्देश्य
प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन समिति के उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार से होंगे -
२. शास्त्रीय प्राकृत भाषा के उन्नयन के लिए कार्य करना।
३. भारत के बाहर प्राकृत भाषाओं के प्रयोगों का अन्वेषण करना।
४. प्राच्य भाषाओं के अन्तर्गत आने वाली अन्य भाषाएं जिनमें संस्कृत, पालि, अपभ्रंश आदि भाषाओं के लिए कार्य करना।
५. प्राच्य भाषाओं में निबद्ध शिलालेख, पाण्डुलिपियाँ, मूर्ति प्रशस्तियाँ, प्राचीन मंदिर एवं वर्तमान के शिलालेख आदि सरंक्षण के लिए कार्य करना।
६. प्राकृत सहित प्राच्य भाषाओं के विकास के लिए शोध पत्रिका का प्रकाशन करना।
७. प्राकृत सहित प्राच्य भाषाओं के विकास के लिए न्यूज बुलेटिन का प्रकाशन करना।
८. प्राकृत सहित प्राच्य भाषाओं के साहित्य का प्रकाशन करना।
९. प्राकृत भाषा के विकास के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर लगाना एवं लगवाना।
१०. प्राकृत के प्रचार-प्रसार के लिए मासिक संगोष्ठियों का आयोजन करना।
११. प्राकृत भाषाओं के विकास के लिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठियाँ, सम्मेलन एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना एवं करवाना।
१२. पाण्डुलिपि संरक्षण, संवर्धन एवं सम्पादन के कार्यों को करना एवं करवाना।
१३. प्राकृत भाषा में निबद्ध महापुरुषों के आदर्श उपदेशों-आदेशों का प्रचार करना और उनके बताए मार्ग पर चलने हेतु आमजन को प्रेरित करना।
१४. प्राकृत भाषा सहित प्राच्य भाषाओं के विकास के लिए पाठशालाओं, शोध संस्थान, विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की स्थापना करना।
१५. प्राकृत सहित प्राच्य भाषाओं के विकास के लिए प्रदर्शनी एवं पुस्तक मेला का आयोजन करना।
१६. प्राकृत भाषा के विकास के लिए श्रेष्ठ कार्य करने वालों के लिए पुरस्कारों की स्थापना करना, पुरस्कार एवं उपाधियाँ प्रदान करना।
१७. प्राकृत की विविध भाषाओं यथा - शौरसेनी, अद्र्धमागधी, मागधी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि समस्त भाषाओं का अध्ययन, अध्यापन एवं शोध कार्य करना।
१८. प्राकृत सहित प्राच्य भाषाओं में निहित पर्यावरण संरक्षण के उपाय, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के उपाय एवं अन्य जनकल्याणकारी ज्ञान का प्रचार एवं तदनुरूप कार्य करना।
१९. प्राकृत सहित प्राच्य विद्याओं के प्रति समर्पित विद्वान्, साधु एवं श्रेष्ठीवर्ग के अभिनंदन ग्रन्थ का प्रकाशन करना।
२०. प्राकृत भाषाओं के अध्ययन हेतु प्रोत्साहन के निमित्त अध्येत्तावृत्तियों (छात्रवृत्ति) की व्यवस्था करना।
२१. प्राकृत भाषाओं से संबंधित प्रतियोगिताएं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना और करवाना।
२२. प्राकृत अध्ययन पाठ्यक्रम का संचालन करना।
२३. प्राकृत पाठशालाओं का संचालन एवं संचालित पाठशालाओं का सम्मान करना।
२४. प्राकृत भाषा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए कार्य करना।
२५. प्राकृत भाषा विज्ञान, शिक्षा, ललितकलाओं आदि में प्रायोगिक रूप से उपलब्ध है, उसका अन्वेषण कर प्रस्तुत करना।
२६. तकनीकी शिक्षा में प्राकृत भाषा का योगदान प्रकट करना।
२७. प्राकृत भाषा में शोधप्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए शोधार्थियों को संसाधन उपलब्ध कराना।
२८. प्राकृत भाषा विद्यालय स्तर पर लागू की जा सके, इस संंबंध में प्रयास करना।
२९. प्राकृत भाषा रोजगारोन्मुखी बन सके इसके लिए सार्थक कार्ययोजना तैयार करना।
३०. प्राकृत भाषा के पाठ्यक्रम को बालशिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा से जोडऩा।
३१. प्राकृत भाषा की लैब विकसित करना।
३२. प्राकृत भाषा के शिलालेख, मूर्ति अभिलेख आदि के संग्रहालय की स्थापना करना।
३३. कृषि विकास में प्राकृत भाषा के तत्वों को प्रकट कर जनसामान्य को उससे परिचित कराना।
३४. प्राकृत भाषा में प्रस्फुटित जनकल्याण एवं सामाजिकता के तत्वों को खोजकर जनकल्याण के कार्य करना।
३५. प्राकृत भाषा जन-जन की है, जाति-धर्म से इसका कोई संबंध नहीं है, इस पुष्ट अवधारणा को स्पष्ट रूप से विकसित करना।
३६. प्राकृत भाषा में निबद्ध महिला शिक्षा, सशक्तिकरण और विविध रोजगारों का अन्वेषण कर कार्य करना।
३७. राष्ट्रीय, धार्मिक एवं सामाजिक त्यौहारों-पर्वों की भारतीय परम्परा का प्रतिष्ठापन प्राकृत भाषा में समाहित है, इसका उद्घाटन करना।
३८. प्राकृत ज्ञान परीक्षा का आयोजन करना।
३९. भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा, भाषा, संस्कृति आदि के लिए केन्द्रीय/राज्यीय शिक्षा मंत्रालय, केन्द्रीय/राज्यीय संस्कृति मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, कृषि मंत्रालय आदि द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को, मूर्त रूप प्रदान करने में प्राकृत भाषा के पुटों का अन्वेषण कर क्रियान्वयन करना एवं करवाना।
४०. प्राकृत संभाषण शिविरों का आयोजन करना।
नोट -
१. उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति में कोई व्यापारिक एवं राजनैतिक लाभ निहित नहीं है।
२. उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विविध समितियों का गठन किया जावेगा।
३. प्रासंगिक होने पर उद्देश्यों में पविर्तन किया जा सकता है।
About Us
भारत सरकार ने प्राच्य भाषाओं के अन्तर्गत आने वाली, देश की प्राचीन प्राकृत भाषा को अक्टूबर २०२४ को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है, जिसका मूल उद्देश्य इस भाषा में छुपे हुए वे सारे रहस्य जिससे राष्ट्र की समृद्धि, विकास, संस्कृति परिज्ञान और आर्थिक सम्पन्नता आदि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सके, जो आज अनुपलब्ध है।