प्रतियोगिता का उद्देश्य
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प्रतियोगिता का उद्देश्य
- यह प्रतियोगिता आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से आयोजित की जा रही है। इस प्रतियोगिता के आयेाजन के लिए आचार्यश्री समयसागरजी महराज, आचार्यश्री विशुद्धसागरजी महाराज, आचार्यश्री वसुनंदीजी महाराज आदि सभी मुनिराजों का आशीर्वाद प्राप्त है।
- प्राच्य भाषाओं के उन्नयन एवं विकास के माध्यम से किए जा रहे समस्त कार्यों का मूल उद्देश्य भारत देश की सम्प्रभुता, सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति के प्रति दृढता के साथ परिचय कराना।
- प्राच्य भाषाओं में निबद्ध शिलालेख, पाण्डुलिपियाँ, मूर्ति प्रशस्तियाँ, प्राचीन मंदिर एवं वर्तमान के शिलालेख आदि की जानकारी प्रदान करना।
- प्राकृत भाषा के अन्तर्गत शौरसेनी, अर्द्धमागधी, मागधी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि समस्त भाषाओं का परिचय कराना।
- प्राच्य भाषाओं में निहित पर्यावरण संरक्षण के उपाय, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के उपाय एवं अन्य जनकल्याणकारी ज्ञान का परिचय कराना।
- प्राकृत भाषा का प्रचार-प्रसार करना।
- प्राकृत भाषा की समझ विकसित करना।
- प्राकृत भाषा पर कार्य करने वाले आचार्य, मुनिराज, विद्वानों से परिचित कराना।
- प्राकृत भाषा के विपुल साहित्य से परिचय कराना।
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भारत सरकार ने प्राच्य भाषाओं के अन्तर्गत आने वाली, देश की प्राचीन प्राकृत भाषा को अक्टूबर २०२४ को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है, जिसका मूल उद्देश्य इस भाषा में छुपे हुए वे सारे रहस्य जिससे राष्ट्र की समृद्धि, विकास, संस्कृति परिज्ञान और आर्थिक सम्पन्नता आदि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सके, जो आज अनुपलब्ध है।
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