संगोष्ठी परिचय

भारत सरकार ने प्राच्य भाषाओं के अन्तर्गत आने वाली, देश की प्राचीन प्राकृत भाषा को अक्टूबर २०२४ को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है, जिसका मूल उद्देश्य इस भाषा में छुपे हुए वे सारे रहस्य जिससे राष्ट्र की समृद्धि, विकास, संस्कृति परिज्ञान और आर्थिक सम्पन्नता आदि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सके, जो आज अनुपलब्ध है। ऐसे में, भारत में अनेक विश्वविद्यालयों में प्राकृत भाषा जैसी प्राच्य भाषाओं के उन्नयन के लिए स्वतंत्र विभाग हैं, अनेक जैन संस्थाएं स्वशासी होकर भी प्राकृत का प्रचार कर रही हैं, कुछ स्वपोषित विद्यालय, महाविद्यालय भी प्राकृत के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्य रहे हैं।