कार्ययोजनाएँ

प्राकृत भाषा कार्ययोजनाएँ

कार्ययोजनाएँ     प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन के उन्नयन के लिए कार्ययोजनाएं तैयार की गई हैं। जिसकी संक्षिप्त जानकारियाँ यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं -   

पंचवर्षीय प्राकृत अध्ययन

इस कार्ययोजना के अंतर्गत दस वर्ष की आयु से प्राकृत अध्ययन शुरू कराया जायेगा। इस अध्ययन को करने वाले पांच वर्षों में प्राकृत भाषा एवं साहित्य में निपुण हो जायेंगे। पांच वर्ष का अध्ययन पूर्ण करने पर उन्हें प्राकृत रत्नाकर की उपाधि से विभूषित किया जायेगा। इसके पाठ्यक्रम में प्राचीन आचार्य एवं प्राकृतविज्ञ नवीन आचार्य-मुनिराजों के साहित्य या साहित्यांशों को सम्मिलित किया जायेगा एवं व्याकरण का सर्वांगीण ज्ञान कराया जायेगा।   

प्राकृत पाठशाला

भारत वर्ष में संचालित सभी पाठशालाओं तक पहुंच बनाना। जहाँ जो पाठशाला चल रही है उसके मूलस्वरूप को बाधा पहुँचाये बिना प्राकृत के कुछ अंशों को सम्मिलित कर बच्चों को प्राकृत भाषा का ज्ञान कराना। इस उपक्रम में पाठशाला का सम्मान समारोह भी आयोजित किया जाना प्रस्तावित है।  

प्राकृत प्रतियोगिताएं

इस उपक्रम में प्राकृत व्याकरण एवं साहित्य से जुड़ी हुई विविध प्रतियोगिताओं का आयोजन करना है। प्राकृत ज्ञान परीक्षा का आयोजन देशभर के विद्यालयों और महाविद्यालयों में आयोजित किए जाने का भी प्रस्ताव है।   

साहित्य प्रकाशन

इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृत साहित्य का पुरातन और नवीन साहित्य प्रकाशित करना है। समिति के सदस्यों की प्राकृत से संबंधित मौलिक कृतियों को भी प्रकाशित किया जायेगा।   

पाण्डुलिपि सम्पादन -

यह उपक्रम उन विद्वानों या प्राकृत स्नेहीजन के लिए है, जो प्राकृत की पाण्डुलिपियों का सम्पादन करना चाहते हैं। इन पाण्डुलिपि के सम्पादन पर होने वाला समस्त व्यय फाउण्डेशन द्वारा दिया जावेगा। इसका प्रशिक्षण भी प्रदान किया जायेगा।   

पुरस्कार एवं उपाधि अलंकरण

यह दोनों उपक्रम प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन के सदस्यों के लिए ही होंगे। जो प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रचार एवं साहित्यिक-रचनात्मक गतिविधियों में अग्रणी होंगे, पुरस्कार समिति द्वारा उनका चयन किया जायेगा और उन्हें पुरस्कृत किया जायेगा या उपाधि से अलंकृत किया जायेगा। पाँच पुरस्कार प्रत्येक वर्ष दिए जाने का प्रस्ताव है, जो कि प्राकृत भाषा की विविध विधाओं पर मौलिक कार्य करने वाले विद्वानों को प्रदान किए जायेंगे।   

प्राकृत शिक्षण शिविर

प्राकृत भाषा एवं संस्कार शिक्षण शिविर का आयोजन किया जायेगा। ये शिविर ग्रीष्मावकाश और शीतावकाश में प्रमुखता से आयोजित किए जायेंगे। इन शिविरों के माध्यम से बाल-आबाल के लिए प्राकृत भाषा का ज्ञान और संस्कारों की शिक्षा प्रदान की जावेगी।  

प्राकृत प्रशिक्षण शिविर

प्राकृत भाषा के शिक्षण के लिए पाठ्यसामग्री तैयार करना और उस पाठ्यसामग्री को कैसे पढ़ाना है? इसका प्रशिक्षण प्रदान किया जाना है। इस प्रशिक्षण शिविर में अध्यापन कराने वाले प्राकृत स्नेहीजनों को प्रशिक्षण विशेषज्ञ विद्वानों द्वारा दिया जावेगा।   

प्राकृत संभाषण शिविर

जो विद्यार्थी सामान्य रूप से प्राकृत भाषा को समझ लेते हैं या प्राकृत को सीख लिया है, उनके लिए प्राकृत संभाषण शिविर का आयोजन करना। ये शिविर सामान्यतया प्रशिक्षण के रूप में आयोजित किए जायेंगे, कालान्तर में इनका स्वरूप विस्तृत किया जावेगा।   

संगोष्ठी/कार्यशाला

मासिक/षाण्मासिक या प्रासंगिक होने पर संगोष्ठियों का आयोजन किया जाना। संगोष्ठियाँ ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार से आयोजित की जावेगी। कार्यशाला का आयोजन भी दोनों प्रकार से होगा। कार्याशालाएं पूर्ण रूपेण प्रायोगिक होगी।  

वार्षिक अधिवेशन

वर्ष में एक बार समिति के सभी सदस्यों को अधिवेशन में आमंत्रित किया जायेगा। उनके द्वारा वर्ष भर में किए गए कार्यों की समीक्षा और नवीन कार्यों की आयोजना की जावेगी। पुरस्कार, उपाधि या अन्य उपलब्धियों के कार्य का आयोजन भी इसी अधिवेशन में किया जावेगा।  

शोध पत्रिका प्रकाशन (हिन्दी)

प्राकृत भाषा में हो रहे शोधकार्य को बढ़ावा देने के लिए शोधपत्रिका का प्रकाशन किया जाना प्रस्तावित है। इस पत्रिका में समिति के सदस्यों के शोधालेखों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जायेगा। यह पत्रिका षाण्मासिकी होगी। इसकी भाषा हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, अंगे्रजी होगी।  

न्यूज बुलेटिन (हिन्दी)

समिति की समस्त गतिविधियों की जानकारी इस पत्रिका में प्रदान की जावेगी। इसकी भाषा हिन्दी होगी। इसमें भी समिति के सदस्यों के लेखों और समाचारों को महत्व दिया जावेगा। यह त्रैमासिक होगी।  

अंग्रेजी मेगजीन

यह पत्रिका त्रैमासिक होगी। इसकी भाषा अंग्रेजी होगी। इसका उद्देश्य भारत और भारत के बाहर प्राकृत भाषा को पहुँचाना होगा।  

प्राकृत पत्रिका -

यह पत्रिका त्रैमासिक होगी। इसकी भाषा प्राकृत होगी। इसका उद्देश्य लोगों को प्राकृत भाषा के लेखन से परिचित कराना, प्राकृत सिखाना और प्राकृत के प्रति रुझान बढ़ाना होगा। प्राकृत भाषा के विकास के लिए हम प्रयासरत हैं। उपरोक्त कार्ययोजनाएँ मूर्त रूप ले सके, इसके लिए प्राकृत मनीषियों का सहयोग अपेक्षित हैं। इन कार्ययोजनाओं के क्रियान्वयन से निश्चित ही अल्प समय में हम प्राकृत को बहुत ऊँचा स्थान दिला सकेंगे। विद्वत्जन से आग्रह है कि उपरोक्त कार्ययोजनाओं के संदर्भ में जो भी सुझाव हों, वे निश्चित रूप से हम तक भेजे, जिससे हम उन्हें लागू कर क्रियान्वयन कर सकें। इसके अलावा भी आपको पास कोई कार्ययोजना है तो अवश्य हमें बताएं, जिससे हम उस कार्ययोजना पर भी कार्य कर सके।  

सम्पर्क सूत्र  डॉ. आशीष जैन आचार्य शाहगढ़, सागर १५४, गीतांजलि ग्रीनसिटी, संजय ड्राइव रोड़ सागर-४७०००२ (म.प्र.) ९३२९०९२३९०  डॉ. आशीष कुमार जैन बम्हौरी सहायक प्राध्यापक, एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह (म.प्र.)  ९६८५८४६१६१