फाउण्डेशन का परिचय

फाउण्डेशन का परिचय

भारत सरकार ने प्राच्य भाषाओं के अन्तर्गत आने वाली, देश की प्राचीन प्राकृत भाषा को अक्टूबर २०२४ को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है, जिसका मूल उद्देश्य इस भाषा में छुपे हुए वे सारे रहस्य जिससे राष्ट्र की समृद्धि, विकास, संस्कृति परिज्ञान और आर्थिक सम्पन्नता आदि के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सके, जो आज अनुपलब्ध है। ऐसे में, भारत में अनेक विश्वविद्यालयों में प्राकृत भाषा जैसी प्राच्य भाषाओं के उन्नयन के लिए स्वतंत्र विभाग हैं, अनेक जैन संस्थाएं स्वशासी होकर भी प्राकृत का प्रचार कर रही हैं, कुछ स्वपोषित विद्यालय, महाविद्यालय भी प्राकृत के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्य रहे हैं।

ऐसे में, प्राकृत भाषा के लिए समर्पित सभी संस्थाओं, विद्वानों और प्राकृत प्रेमियों को एक मंच पर एक साथ स्थापित करना आवश्यक हो गया है, जिससे हम प्राकृत भाषा के सर्वांगीण विकास के लिए परिचर्चा और क्रियान्वयन की युति संस्थापित कर सकें। इसी उद्देश्य को लेकर प्राकृत भाषा के मर्मज्ञ विद्वान् दिगम्बर जैनाचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज ने अतिशय क्षेत्र अंदेश्वर पाश्र्वनाथ कुशलगढ़ जिला - बांसवाड़ा (राजस्थान) में एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह मध्यप्रदेश के तत्त्वावधान में जैन और प्राकृत अध्ययन एवं संस्कृत विभाग द्वारा ''आचार्य सुनीलसागर महाराज का प्राकृत साहित्य के माध्यम से राष्ट्र को अवदान'' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय युवा विद्वत् संगोष्ठी में 07 अक्टूबर 2020 को भारत के प्राकृत विद्वानों के एक संगठन की स्थापना के संबंध में मार्गदर्शन दिया था। तदनुरूप जैन अनुशीलन केन्द्र राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के तत्त्वावधान में दिनांक 16-18 सितम्बर 2022 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय जैन विद्या विद्वत् संगोष्ठी में सम्मिलित प्राकृत प्रेमियों एवं विद्वानों के सुझाव पर प्राकृत संगठन के लिए मसौदा तैयार करने विचार हेतु किया गया, जिसमें प्राकृत भाषा के विकास के लिए डॉ. ऋषभचन्द जैन फौजदार, एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह की अध्यक्षता में ९ सदस्यीय समिति तैयार की गई और आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के समक्ष उपस्थित होकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया गया, जिसमें प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन के नाम से एक संगठन के गठन की आयोजना की गई।

समिति ने प्राकृत भाषा के विकास के लिए लगभग २ वर्षों के अथक परिश्रम से प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन का मसौदा तैयार किया गया। उक्त कार्ययोजना को किशनगढ़ जिला- अजमेर, राजस्थान में 27-29 अक्टूबर 2024 में आयोजित राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी में आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के ससंघ सान्निध्य में रखा गया। आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज ने उक्त कार्ययोजना पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा - आचार्यश्री वसुनंदीजी महाराज, आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रणम्यसागरजी महाराज, आचार्यश्री विशुद्धसागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री आदित्यसागरजी महाराज एवं जो-जो दिगम्बर मुनिराज प्राकृत भाषा के लिए विशिष्ट कार्य रहे हैं, आपका यह फाउण्डेशन उनका भी मार्गदर्शन प्राप्त करें। जिससे सभी मिलकर प्राकृत भाषा के उन्नयन में सहभागी बन सके। हमने तदनुरूप कार्य करने के लिए आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।

प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन को पंजीकृत कराने की प्रक्रिया की गई। पंंजीयन में अनेक व्यवधान उपस्थित हुए लेकिन हमारी पूरी टीम ने इस कार्य को अत्यंत मनोयोग से पूर्ण किया। दिनांक ११ फरवरी २०२५ को प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन का पंजीयन का प्रमाण-पत्र प्राप्त हो गया है, जिसका क्रमांक ०६/०९/०१/१५३०३/२५ है। आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के सान्निध्य में एवं श्री दिगम्बर जैन बीसपंथी जैन ट्रस्ट, दाहोद गुजरात के आयोजकत्व में दिनांक २१ फरवरी से २२ फरवरी २०२५ तक  अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृत विद्वत्सम्मलेन के आयोजन में उपस्थित समस्त प्राकृत स्नेहीजनों के मध्य प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन सम्पूर्ण मसौदा प्रस्तुत किया जा रहा है। जिसके पश्चात् सभी प्राकृत प्रेमी इसी कार्य को करने के लिए उद्यत हो सकेंगे। मैं अपनी पूरी टीम को बहुत-बहुत साधुवाद देता हूँ जिन्होंने अथक परिश्रम करके इस मसौदे को तैयार किया और पंजीयन की जटिल प्रक्रियाओं को पूर्ण कर आज शास्त्रीय प्राकृत भाषा का उत्थान करने के लिए संकल्पपूर्वक अग्रसर हुए हैं। डॉ. ऋषभचन्द जैन फौजदार अध्यक्ष निर्माण समिति प्राकृत भाषा विकास फाउण्डेशन|